किसी भी व्यक्ति को सफल बनाने में प्रेरणाशक्ति की बड़ी भूमिका होती है। यह हमारे मन में नई शक्ति का संचार कर हमें जोश से भर देती है। हम स्वयं को प्रेरित करने के लिए अनेक तरीकों को अपनाते है। जैसे विश्व के सफलतम व्यक्तियों की जीवनियां पढ़ते है, और जानने कि कोशिश करते है कि वो कौन सी बातें है जिन्होंने उन्हें सफल बनाया। इन्हीं बातों को लेकर मैंने यहां जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता को प्राप्त करने के लिए जो भी प्रयास किये है, उन्हे संक्षेप में प्रस्तुत कर रहा हूँ। आषा है आप मेरे द्वारा किये गये प्रयास के पीछे छिपी हुई मेहनत, लगन को समझ पायें। मेरा नाम जय प्रकाष काछी पिता श्री श्याम बदन काछी, मेरा जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में वर्ष 1983 में हुआ है, मैने अपनी प्रारम्भिक षिक्षा धनपुरी जिला शहडोल से प्राप्त की एवं उच्च षिक्षा शासकीय नेहरू महाविद्याल बुढ़ार से प्राप्त की।
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सफलता की कहानी
जय प्रकाश (जेपी)
मधुमक्खी पालन विशेषज्ञ और समाजसेवी
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मैनें आरम्भ से ही माता-पिता के द्वारा दिये गये संस्कारों को अपना आदर्ष मानकर, समाजिक सेवा को प्राथमिकता दी और मास्टर आफ सोषल वर्क (MSW) में स्नातकोत्तर की पढ़ाई वर्ष 2007-08 में पूर्ण की।
पढ़ाई के दौरान मेरा परिचय केन्द्र सरकार के द्वारा संचालित उपक्रम नेहरू युवा केन्द्र शहडोल युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय भारत सरकार के जिला समन्वय श्री आर.आर.सिंह जी से हुई। जिनके मागदर्षन में मैनें समाज के विभिन्न मुद्दों पर कार्य किया एवं जानकारी प्राप्त की। तथा इस कार्य हेतु नेहरू युवा केन्द्र शहडोल ने जिला युवा पुरस्कार से सम्मानित किया।
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निरंतर सामाजिक कार्य से जुडे रहते एवं श्री आर.आर.सिंह जी के द्वारा प्राप्त मार्गदर्षन से प्रेरित होकर मैने समाजिक कार्यों को मूर्त रूप देने के लिए एक समिति (NGO) ‘‘नारी विकास समिति बकहो’’ का गठन किया जिसमें बेरोजगार युवक/युवतियों, महिलाओं के रोजगार एवं स्व-रोजगार के लिए कार्य करना प्रारम्भ किया।
कई वर्षो तक निरंतर सामाजिक कार्य करते हुये अपनी समिति के माध्यम से मध्यप्रेदष एवं केन्द्र सरकार द्वारा संचालित कौषल विकास प्रषिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से संभाग के लगभग 2200 युवक/युवतियों को प्रषिक्षण देकर रोजगार से जोड़ा। इस दौरान कई राज्य स्तरीय एवं राष्ट्रीय स्तर की कंपनीयों से अनुबंध प्राप्त कर रोजगारोन्मुखी प्रषिक्षण देकर प्रषिणार्थीयों को नौकरियां दिलाने का कार्य किया।
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वर्ष 2014 में माननीय प्रधानमंत्री जी के मन की बात कार्यक्रम से सुनकर उनके द्वारा पूरे देष में ‘‘मीठी क्रान्ती‘‘ से जुडकर ग्रामीणो एवं किसानो की आय दोगुनी एवं एक सषक्त भारत का निर्माण किये जाने की बात मुझे काफी प्रेरणादायी लगी।
इसके बाद मैने अपने क्षेत्र से जुडे ग्रामीणो, किसानों एवं स्वयं की आय को कैसे मीठी क्रांती से जुडकर बढाया जाये, इसके बारे में शोध किया और पाया की हमारे अन्नदाता जो कि सभी का पेट भरते हैं उनकी आर्थिक स्थिति बहोत ही दयनीय है।
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जिसके बाद मैने अपने एनजीओ के माध्यम से यह ठाना की स्वयं के साथ उन गरीब किसानो एवं ग्रामीणो की आय दोगुनी कैसे कर सकते है, तदोपरांत मैने मधुमक्खी पालन की जानकारी प्राप्त करने के स्थानीय प्रषासन से संपर्क किया। जहां से मुझे पता चला की हमारे संभाग में मधुमक्खी पालन से संबंधित जानकारी नहीं प्राप्त हो सकती है जानकारी प्राप्त करने के लिये मुझे मुरैना स्थित मधुमख्खी पालन अनुसंधान केन्द्र मुरैना जाना होगा।
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वर्ष 2015 में मै उक्त अनुसंधान केन्द्र गया और मधुमक्खी पालन का प्रषिक्षण प्राप्त कर मुरैना जिले के ही एक मधुमक्खी पालक के यहां रहकर वृस्तृत रूप से कार्य कर सभी बारिकियों को सीख कर स्वयं का ही 50 मधुमक्खीयों की पेटियों (3000 प्रति पेटी की दर) से अपने व्यवसाय आरम्भ किया। मैने 50 पेटियां एवं उपकरण खरीदने के लिए 1,60,000/- निवेष एवं वर्ष कें अंत तक 1,00,000/- अतिरिक्त खर्च वहन कर 2,60,000/- का कुल निवेष कर दिया।
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वर्ष के अंत तक मैने एक पेटी से 35 किलो शहद (प्रति पेटी की औसत से) कुल 50 पेटियों से 1750 किलो शहद उत्पाद किया जिसे मैने बाजार में 180 रु. प्रतिकिलो की दर से बेचकर कुल 3,15,000/- रूपये की आय की। मधुमक्खी पालन का एक अतिरिक्त लाभ यह भी है कि मधुमक्खी अपनी संख्या बढ़ाती है जिससे वर्ष के अंत तक मेरे पास 20 पेटी और बढ़ गई। 60000/- रूपये एवं मधुमक्खी के अन्य उत्पादों (मोम) को बेचकर मैने 5000/- और कमाये जिससे मेरी कुल आय 1,20,000/- सभी खर्चे काटकर कमा लिये।
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मैने कम से कम में अपने व्यवसाय की शुरूआत की और अच्चा लाभ कमाया। अब मुझे पता चल चुका था की मधुमक्खी पालन के व्यवसाय से कैसे लाभ कमाया जा सकता है अन्य कुछ वर्षों में और मेहनत से इस व्यवसाय में लगा रहा, इसी दौरान मेरा सम्पर्क इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातिय विष्वविद्यालय अमरकंटक के एलबीआई (लाईवलीहुड इक्युवेषन इंस्टीट्युट) के प्रमुख से हुआ। उनके द्वारा मुझे प्रषिक्षक के रूप में मनोनीत कर अनूपपुर जिले के किसान भाईयों को मधुमक्खी पालन की बारिकियों को सिखाने का कार्य दिया गया और उनकी आजीविका को इस व्यवसाये के माध्यम से कैसे बढ़ाये उसके बारे मेरे द्वारा प्रषिक्षण निरंतर दिया जा रहा है।
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आज दिनांक तक मेरे पास स्वयं की 250 पेटियां मधुमक्खी सहित हो चुकी है जिससे वार्षिक मुझे लगभग 8750 किलो शहद प्राप्त होता है जिसे बेच कर मैं लगभग 15,75,000/- प्राप्त हो जाते है सभी खर्चे काटकर 5,00,000/- वार्षिक आय हो जाती है।
पूर्ण रूपेण प्राकृतिक एवं शुद्ध शहद के उत्पादन के लिये मुझे वर्ष भर यह पेटियां भारत देष के विभिन्न क्षेत्रों में ले जाना पडता जिससे मेरी आय प्रभावित होती है। जैसा की मैने उपर कुछ आंकडों के माध्यम से अपनी आय का प्राक्कलन दिया है उसे एक निष्चित आय तक पहुंचाने के मैं शासन से उम्मीद करता हूँ कि वर्ष भर यदि मेरी मधुमक्खीयों को इसी क्षेत्र में नेक्टर और पोलन उपलब्ध हो जाये तो माईग्रेषन पर लगने वाला व्यय बच जायेगा जिससे मेरे साथ संभाग के बी-कीपर किसान भाईयों को यह कार्य करके अच्छा खासा मुनाफा दिलाया जा सकता है।